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अनाम गंध (हाइकु) / जगदीश व्योम
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03:43, 4 जून 2012
आदमी बने रहो
यही बहुत ।
नहीं पनपा
बरगदी छाँव में
कभी पादप।
</poem>
डा० जगदीश व्योम
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