{{KKRachna
|रचनाकार=अरविन्द श्रीवास्तव
|संग्रह=राजधानी में एक उज़बेक लड़की / अरविन्द श्रीवास्तव
}}
{{KKCatKavita}}
कविता की
करता हूँ चौका वर्तन-बर्तन
झाड़ू-बहारू
रोपता हूँ फूल-पत्तियाँ
सपने सारे के सारे
करता हूँ इतना ज्यादा ज़्यादा प्रेम
कि अक्सर सहमी,
सशंकित आँखों से
देखती है कविता मुझे!
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