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सूरदास / परिचय

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/* सूरदास जी के कुछ पद */
==सूरदास जी के कुछ पद==
मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे।
 
जैसे उड़ि जहाज की पंछि, फिरि जहाज पर आवै॥
 
कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यावै।
 
परम गंग को छाँड़ि पियसो, दुरमति कूप खनावै॥
 
जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यो, क्यों करील-फल खावै।
 
'सूरदास' प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै॥
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चरन कमल बंदौ हरिराई ।
सूर कहा कहे, विविध आंधरो, बिना मोल को चेरो ॥
 
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मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ।<br>
मोसौं कहत मोल कौ लीन्हौ, तू जसुमति कब जायौ?<br>
कहा करौं इहि के मारें खेलन हौं नहि जात।<br>
पुनि-पुनि कहत कौन है माता, को है तेरौ तात?<br>
गोरे नन्द जसोदा गोरी तू कत स्यामल गात।<br>
चुटकी दै-दै ग्वाल नचावत हँसत-सबै मुसकात।<br>
तू मोहीं को मारन सीखी दाउहिं कबहुँ न खीझै।<br>
मोहन मुख रिस की ये बातैं, जसुमति सुनि-सुनि रीझै।<br>
सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत।<br>
सूर स्याम मौहिं गोधन की सौं, हौं माता तो पूत॥