==सन्यास==
संवत् १५८३ ज्येष्ठ शुक्ला १३ गुरुवारको [[भारद्वाज]] [[गोत्र]] की एक सुन्दरी कन्याके साथ उनका विवाह हुआ और वे सुखपूर्वक अपनी नवविवाहिता वधूके साथ रहने लगे। एक बार उनकी स्त्री भाईके साथ अपने मायके चली गयी। पीछे-पीछे तुलसीदासजी भी वहाँ जा पहुँचे। उनकी पत्नीने इसपर उन्हें बहुत धिक्कारा और कहा कि 'मेरे इस हाड़-मांसके शरीरमें जितनी तुमहारी आसक्ती है, उससे आधी भी यदि भगवान्में होती तो तुम्हारा बेड़ा पार हो गया होता'।
तुलसीदासजीको ये शब्द लग गये। वे एक क्षण भी नहीं रुके, तुरंत वहाँसे चल दिये। वहाँसे चलकर तुलसीदासजी प्रयाग आये। वहाँ उन्होंने गृहस्थवेशका परित्याग कर साधुवेश ग्रहण किया। फिर तीर्थाटन करते हुये काशी पहुँचे। [[मानसरोवर]] के पास उन्हें [[काकभुशुण्डि]] के दर्शन हुए।
==श्रीरामसे भेंट==