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सीढ़ियों पर / कंस्तांतिन कवाफ़ी
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05:36, 20 जून 2012
थके हुए बदन से तुमने भी मुझ पर प्रेम लुटाया
बदन हमारे जल रहे थे, एक-दूजे को दाहा
पर घबराए हम
डरे
पड़े
हुए थे, कोई न कुछ कर पाया
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
</poem>
अनिल जनविजय
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