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थके हुए बदन से तुमने भी मुझ पर प्रेम लुटाया
बदन हमारे जल रहे थे, एक-दूजे को दाहा
पर घबराए हम डरे पड़े हुए थे, कोई न कुछ कर पाया
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
</poem>
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