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खोने को हैं बेताब( हाइकु) /रमा द्विवेदी
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05:33, 22 जून 2012
१- ढोती है रात
मनुज की पीडाएं
भोर की आस |
<br>
२- मुखौटे लगा
खोने को हैं बेताब
चैटिंग – यार |
<br>
३- हैं अनजान
अडोस-पड़ोस से
सर्फिंग -प्यार |
<br>
४- ऊषा मुस्काई
भौंरे गुनगुनाए
ताजगी आई |
<br>
५- आँगन धूप
भागती फिर रही
छत-मुडेर |
<br>
६- आसमां झुक
धरा से कहता ये
तुझ से ही मैं |
<br>
</poem>
Dr. ashok shukla
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