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क़तआत / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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17:50, 26 जून 2012
मौत का शुक्रिया 'रक़ीब' के वो
याद आयी तो ज़िन्दगी निखरी
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आपकी बात ही क्या, आप तो हैं हिन्दी दां
हाँ, मगर हमको है इस उर्दू जुबां से उल्फत
सर के ऊपर से निकल जाती है हिन्दी मेरे
और उर्दू से मुझे मिलती है बेहद लज़्ज़त
</poem>
SATISH SHUKLA
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