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03:04, 16 जुलाई 2012 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विजय कुमार पंत
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<poem>
कौन है गुनाहगार...
ब्रह्मा सृष्टि के जनक????....
या माता पिता???....दोषी तो गुणसूत्र भी नहीं है..
शायद....
फिर भी मेरा आभास ही...षड्यंत्र ..में लीन
हो जाता है...मेरे विनाश के..
जन्म हो भी तो...मैं साथ में लेकर आती..हूँ
कई सारी मजबूरियां....
ये न जाने किसने मुझे..इज्ज़त बना दिया..
रोज तार तार करने के लिए सरे आम सड़कों पर...
इंसान निर्वस्त्र ही तो पैदा होता है....
फिर भी चीर हरण में इतनी दिलचस्पी क्यों...
सब कुछ घूरता रहता है मुझे
गली, नुक्कड़...चौराहे रास्ते
यहाँ तक कि मेरा घर....सब कुछ
फिर भी मैं कभी उसे कोख में ही मारने की
हिम्मत नहीं कर पाती...
जिसने मुझे इज्ज़त बनाया...बस तार तार करने के लिए
काश चाणक्य से ही सीख लेती ....
कि कारण का समूल नाश ही समाधान है ...
समूल नाश....गर्भपात चलता रहे......राक्षस पैदा नहीं होने चाहिए
</poem>