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नहीं तेरे चरणों में / अज्ञेय
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15:27, 19 जुलाई 2012
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कानन का सौन्दर्य लूट कर सुमन
इक_े
इकट्ठे
कर के
धो सुरभित नीहार-कणों से आँचल में मैं भर के,
देव! आऊँगा तेरे द्वार-
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