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08:15, 20 जुलाई 2012 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा
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<Poem>
घर सँ बहराइतेँ माइ कहलनि
जा, ...जाए छs त मुदा
एकटा बात मोन मे खोइस लs
जखन कहियो आकाश बाटे जहिs त
सम्हरि केँ चलिहs आ किछु आन चीज नहि छूबिहs
चान तरेगनक गाम आएत
लागत पैरक ठेस त टूटि जायत
बड्ड नोखगर होइत अछि घोपाइयो जाइत
जखन रौद फुटत तखने यात्रा करिहs
किएsकि रौदे मे रहय छै ठंढक छॉव
भगवाने बचेताs तोरा सभ दुख सँ
हमर आशीर्वाद त साथहि छs “बऊआ”
</poem>