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सागर पर भोर / अज्ञेय

149 bytes added, 12:27, 30 जुलाई 2012
{{KKRachna
|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=अरी ओ करुणा प्रभामय / अज्ञेय; सुनहरे शैवाल / अज्ञेय
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<Poem>
बहुत बड़ा है यह सागर का सूना
असमंजस के एक और दिन पर, ओ सूरज,
क्यों, क्यों, क्यों यह तुम उग आए ?
 
'''आटाभी (जापान), 21 दिसम्बर, 1957'''
</poem>
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