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भेड़िए / संजय कुमार कुंदन

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|रचनाकार=संजय कुमार कुंदन|संग्रह=एक लड़का मिलने आता है / संजय कुमार कुंदन
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<poem>
आज का दिन अजब-सा गुज़रा है
इस तरह
जैसे दिन के दाँतों में
गोश्त का कोई मुख़्तसर रेशा
बेसबब आ के
फँस गया-सा हो
एक मौजूदगी हो अनचाही
एक मेहमान नाख़रूश जिसे
चाहकर भी निकाल ना पाएँ
और जबरन जो तवज्जों1 माँगे
आप भी मसनुई2 तकल्लुफ़3 से
देखकर उसको मुस्कराते रहें
आज का दिन अजब-सा गुज़रा है<br>इस तरह<br>जैसे दिन के दाँतों में<br>गोश्त का कोई मुख़्तसर रेशा<br>बेसबब आ के<br>फँस गया-सा हो<br>एक मौजूदगी हो अनचाही<br>एक मेहमान नाख़रूश जिसे<br>चाहकर भी निकाल ना पाएँ<br>और जबरन जो तवज्जों1 माँगे<br>आप भी मसनुई2 तकल्लुफ़3 से<br>देखकर उसको मुस्कराते रहें<br><br> भेड़िए आदमी की सूरत में<br>इस क़दर क्यों क़रीब होते हैं<br/poem
1.ध्यान, 2.कृत्रिम, 3.औपचारिकता।