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जब जब सुरति होति उहिं हित की, बिछुरि बच्छ ज्यौं धायौ ॥<br>
अब हरि कुरुछेत्र मैं आए , सो मैं तुम्हैं सुनायौ ।<br>
सब कुल सहित नंद सूरज प्रभु, हित करि उहाँ बुलायौ ॥2॥<br><br>
वायस गहगहात सुनि सुंदरि, बानी बिमल पूर्ब दिसि बोली ।<br>