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खुली खिड़की / शम्भु बादल
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06:46, 3 अगस्त 2012
|रचनाकार=शम्भु बादल
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{{KKCatKavita}}
<poem>
तुम्हारी खुली खिड़की से
देश लुट जाए
तुम्हें आनन्द है
तुम्हारी खुली खिड़की से
<br>
देश लुट जाए<br>
तुम्हें आनन्द है<br><br>
तुम्हारी खुली खिड़की से<br>
किसी का घर प्रकाशित हो
<br>
तुम्हे
तुम्हें
क्यों एतराज है?
</poem>
अनिल जनविजय
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