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उल्लस शशि ने क्रीड़ा में, बीतीं कुछ विह्वल घडिय़ाँ।घड़ियाँ।(कब तक न बनी ही जातीं उस प्रणय-लड़ी की कडिय़ाँ।कड़ियाँ।)
रवि के आने पर शशि ने ली बिदा निशा से सत्वर।
चल दिया लिये प्राणों में निज सफल प्रेम का निर्झर!
'निशि को व्यक्तित्व नहीं' है, 'मैं ही हूँ उस का जीवन',
'ये ओस-बिन्दु हैं उस के बिखरे मूच्र्छित मूर्च्छित आँसू-कन,'
क्या देखा यह सब शशि ने?
जब उस के पुरुष-प्रणय को साफल्य दिया प्रकृति ने?
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