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खुल गई नाव / अज्ञेय
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{{KKRachna
|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=
इन्द्र-धनु रौंदे हुए थे / अज्ञेय;
सुनहरे शैवाल / अज्ञेय
}}
{{KKCatGeet}}
व्यथा विदा की
जागी धीरे-धीरे।
'''स्वेज अदन (जहाज में), 5 फरवरी, 1956'''
</poem>
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