Changes

तू-मैं / अज्ञेय

2 bytes removed, 05:18, 9 अगस्त 2012
|संग्रह=अरी ओ करुणा प्रभामय / अज्ञेय
}}
{{KKCatKavitaKKCatGeet}}
<poem>
तू फाड़-फाड़ कर छप्पर चाहे
घड़े के घड़े अमृत बरसाया कर
मैं उस की बूँद-बूँद के संचय के हित सौ-सौ बार मरूँ।
तू सुर-लोकों के द्वार खोल नित नये
तू सुर-लोकों के द्वार खोल नित नये
राह पर नन्दन-वन कुसुमाता जा-
मैं बार-बार हठ कर के यह, अनन्य यह मानव-लोक वरूँ।
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits