Changes

निमाड़: चैत / अज्ञेय

124 bytes added, 11:19, 9 अगस्त 2012
{{KKRachna
|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ / अज्ञेय
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
:::(1)
पेड़ अपनी-अपनी छाया को
आतप से
उन के पत्ते झराती जाती है।
:::(2)
छाया को
झरते पत्ते
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits