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07:25, 11 अगस्त 2012 अंबर हेठाँ धरती वसदी, एथे हर रुत हँसदी
किन्ना सोणा देस है मेरा.
धरती सुनहरी अंबर नीला,
हर मौसम रंगीला,
ऐसा देस है मेरा,
बोले पपीहा कोयल गाये,
सावन घिर घिर आये
ऐसा देस है मेरा,
गेंहू के खेतों में कंघी जो करे हवाएं,
रंग-बिरंगी कितनी चुनरियाँ उड़-उड़ जाएं,
पनघट पर पनहारन जब गगरी भरने आये,
मधुर-मधुर तानों में कहीं बंसी कोई बजाए, लो सुन लो,
क़दम-क़दम पे है मिल जानी कोई प्रेम कहानी,
ऐसा देस है मेरा...
बाप के कंधे चढ़ के जहाँ बच्चे देखे मेले,
मेलों में नट के तमाशे, कुल्फ़ी के चाट के ठेले,
कहीं मिलती मीठी गोली, कहीं चूरन की है पुड़िया,
भोले-भोले बच्चे हैं, जैसे गुड्डे और गुड़िया,
और इनको रोज़ सुनाये दादी नानी इक परियों की कहानी,
ऐसा देस है मेरा...
मेरे देस में मेहमानों को भगवान कहा जाता है,
वो यहीं का हो जाता है, जो कहीं से भी आता है,
तेरे देस को मैंने देखा तेरे देस को मैंने जाना,
जाने क्यूँ ये लगता है मुझको जाना पहचाना,
यहाँ भी वही शाम है वही सवेरा,
ऐसा ही देस है मेरा जैसा देस है तेरा...