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13:55, 27 अगस्त 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=घनानंद
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<kavitt>
राति -द्यौस कटक सचे ही रहे, दहै दुख
कहा कहौं गति या वियोग बजमार की .
लियो घेरि औचक अकेली कै बिचारो जीव,
कछु न बसाति यों उपाव बलहारे की .
जान प्यारे, लागौ न गुहार तौ जुहार करि,
जूझ कै निकसि टेक गहै पनधारे की .
हेत-खेत धूरि चूर चूर ह्वै मिलैगी,तब
चलैंगी कहानी ‘घनआनन्द’ तिहारे की