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14:15, 27 अगस्त 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=घनानंद
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<poem>
इन बाट परी सुधि रावरे भूलनि,
कैसे उराहनौ दीजिए जू .
इक आस तिहारी सों जीजै सदा ,
घन चातक की गति लीजिए जू .
अब तौ सब सीस चढाये लई ,
जु कछु मन भाई सो कीजिये जू.
‘घनआनन्द’ जीवन -प्रान सुजान,
तिहारिये बातनि जीजिये जू .
</poem>