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15:16, 27 अगस्त 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पद्माकर
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औरे भांति कुंजन में गुंजरत भौर भीर ,
औरे भांति बौरन के झौरन के ह्वै गए.
कहै ‘पदमाकर’ सु औरे भांति गलियानि ,
छलिया छबीले छैल औरे छबि छ्वै गए .
औरे भांति बिहँग समाज में आवाज होति,
अबैं ऋतुराज के न आजु दिन द्वै गए .
औरे रस,औरे रीति औरे राग औरे रंग ,
औरे तन औरे मन ,औरे बन ह्वै गए .