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14:14, 29 अगस्त 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=सीता-वनवास / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[Category:गीत]]
<poem>
नाथ ! आज्ञा दें, अब मैं जाऊँ
वर दें, वन में आयु बिता कर फिर प्रभु-चरणों में आऊँ
'उतर चुकी हूँ सिंहासन से
स्वामी! पर न उतारे मन से
पा न सकी जो कुछ इस तन से
नये जन्म में पाऊँ
'देख मुझे फटती है छाती
माँ फिर फिर है हाथ बढ़ाती
पर कैसे ले प्रभु की थाती
भू के बीच समाऊँ
बात जनकपुर जब पहुँचेगी
अवध-प्रजा क्या उत्तर देगी
वृद्ध पिता पर जो बीतेगी
कैसे वो बतलाऊँ!'
नाथ ! आज्ञा दें, अब मैं जाऊँ
वर दें, वन में आयु बिता कर फिर प्रभु-चरणों में आऊँ
<poem>