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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=भक्ति-गंगा / गुलाब खंडेलवाल
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[[Category:गीत]]
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करुणामय! तेरी करुणा का भार मधुर झेलूँ कैसे!
चार हाथ से तू देता मैं दो हाथों से लूँ कैसे!

तेरी करुणा बरस रही हैं बन कर उषा का आलोक
जिससे मुखरित हो कर हँसते भू-नभ,दिशि-दिशि, तारालोक
गंगा की जिस धवल धार को गिरिमालायें सकीं न रोक
उसे शीश पर धर ले कैसे यह नन्ही दूर्वा की नोंक
तेरी इस विराट वीणा के तारों से खेलूँ कैसे!

करुणामय! तेरी करुणा का भार मधुर झेलूँ कैसे!
चार हाथ से तू देता मैं दो हाथों से लूँ कैसे!
<poem>
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