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जिगर और दिल को बचाना भी है / मजाज़ लखनवी
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03:07, 22 सितम्बर 2012
मगर अपना दामन बचाना भी है
ये दुनिया ये उक़्बा
<ref>(अ.)परलोक;यमलोक</ref>
कहाँ जाइयेकहीं अह्ले -दिल
<ref>दिल वालों का </ref>
का ठिकाना भी है?
मुझे आज साहिल पे रोने भी दो
</poem>
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द्विजेन्द्र द्विज
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