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कुछ शेर / जावेद अख़्तर
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07:30, 23 सितम्बर 2012
<poem>
(1)
पुरसुकूं लगती है कितनी झील के पानी पे बत
<ref>बतख</ref>
पैरों की बेताबियाँ पानी के अंदर देखिए।
(2)
Dr. ashok shukla
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