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<poem>
अपना चेहरा उठाए
खडे खड़े हैं हम बारहा
मुकाबिल आपके
अब आंखें हैं
पर द़ष्टि दृष्टि नहीं है
मन हैं
पर उसकी उडानउड़ान
की बोर्ड से कंपूटर स्‍क्रीन तक है
और उपलब्धियां हैं बेशुमार
जहालत और पीडा पीड़ा से भरे
इस जहान में
अपना चेहरा लिए
खडे खड़े हैं हम
सबसे असंपृक्‍त
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