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कृष्ण दर्शन / सूरदास

1 byte removed, 13:12, 9 अक्टूबर 2007
मनहु चंद-मन सुधा गँडूषनि, डारति हैं आनंद भरे सब ॥
 
आईं निकसि जानु कटि लौं सब, अँजुरिनि तैं लै लै जल डारतिं ।