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वैराग्य / सूरदास

1 byte removed, 13:43, 9 अक्टूबर 2007
आन कहत, आनै कहि आवत, नैन-नाक बहै पानी ।
 
मिटि गई चमक-दमक अँग-अँग की, मति अरु दृष्टि हिरानी ।