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आत्मज्ञान / सूरदास
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13:43, 9 अक्टूबर 2007
ज्यौं सौरभ मृग-नाभि बसत है, द्रुम तृन सूँधि फिर्यौ ।
ज्यौं सपने मै रंक भूप भयौ, तसकर अरि पकर्यौ ।
Pratishtha
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