<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!आज करवा चौथ</div><div style="font-size:15px;"> कवि:[[सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"जयकृष्ण राय तुषार| सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"जयकृष्ण राय तुषार]] </div>
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</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!आज करवा चौथपूछेगा सारा गाँव, बंधु!का दिन हैआज हम तुमको सँवारेंगे ।देख लेनातुम गगन का चाँदमगर हम तुमको निहारेंगे ।
यह घाट वही जिस पर हँसकर,पहनकरवह कभी नहाती थी धँसकरकाँजीवरम का सिल्कहाथ में मेंहदी रचा लेना,आँखें रह जाती थीं फँसकरअप्सराओं कीतरह ये रूपआज फ़ुरसत में सजा लेना,कँपते थे दोनों धूल मेंलिपटे हुए ये पाँव बंधु!आज नदियों में पखारेंगे ।
वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,हम तुम्हाराफिर साथ देंगे उम्रभरहमें भी अपने मझधार में रहती थीमत छोड़ना,सबकी सुनती थीआज चलनी मेंकनखियों देखनाऔर फिर ये व्रत अनोखा तोड़ना, सहती थीहै भलेपूजा तुम्हारी येआरती हम भी उतारेंगे । ये सुहागिनऔरतों का व्रतनिर्जला,पति की उमर की कामनादेती थी सबके दाँवथाल पूजा कीसजा कर कर रहींपार्वती शिव की सघन आराधना, बंधु! आज इनकेपुण्य के फल सेहम मृत्यु से भी नहीं हारेंगे ।
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