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उससे मेरा मह-ए-ख़ुरशीद जमाल अच्छा है।
बोसा <ref>चुम्बन</ref> देते नहीं और दिल है हर लह्ज़ा निगाह,
जी में कहते हैं कि मु़फ्त आए तो माल अच्छा है।
और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया,
साग़र-ए-जम से मेरा जाम-ए-सि़फाल <ref> मिट्टी का प्याला </ref> अच्छा है।
बेतलब दें तो मज़ा उसमें सिवा मिलता है,
क़तरा दरिया में जो मिल जाए तो दरिया हो जाए,
काम अच्छा है वो , जिसका कि मआल <ref>परिणाम</ref> अच्छा है।
ख़िज़्र सुल्ताँ को रखे ख़ालिक-ए-अक्बर सर-सब्ज़,
वो समझते है बीमार का हाल अच्छा है
देख ये देखिये पाते उसाक हैं उश्शाक़ <ref>आशिक़ (बहुवचन)</ref> बुतो से क्या फ़ैज<ref>फायदा</ref>
इक ब्रहामन ने कहा है कि ये साल अच्छा है
हमको मालूम है जन्नत कि हकीकत की हकी़क़त लेकिनदिल को खुश रखने को बहलाने के लिए "गालिबग़ालिब" , ये खयाल अच्छा है </poem> ==शब्दार्थ==<references/>
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