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बनारस में पिंडदान / लीना मल्होत्रा
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06:32, 8 नवम्बर 2012
<poem>
घाट जब मंत्रों की भीनी मदिरा पीकर बेहोश हो जाते हैं
तब भी जागती रहती हैं घाट की
सीढियाँ
सीढ़ियाँ
गंगा ख़ामोश नावों में भर-भर के लाती हैं पुरखे
बनारस की सोंधी सड़कों से गिरते पड़ते आते हैं पगलाए हुए पुत्र,
अनिल जनविजय
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