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तूं कद आसी / गोरधनसिंह शेखावत

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तूं कद आसी
अलूणी बाहां सूं बंध्योड़ा
थारी गाढी प्रीत रा
रंगीला सपनां नै
ओळू आवण लागी
सावण सा मीठा होठां पर
थारी हेत री लगायोड़ी लाली री
रंग उतरबा लाग्यो
तूं कद आसी

गोखा रै सारै
थारा हाथ सूं लगायोड़ी
सुरजमुखी रै फूल आग्या
बाट जोवतां-जोवतां
म्हारो मन
सूखी फळी सो तिड़कण लाग्यो
तूं कद आसी

थारै बिना आ देह
बंजड़ धरती सी लागै
थारै बिना आ उमर
करज लियोड़ै धन सी लागै
थारै बिना अै गीत
जेठ री बळती लूवां सा लगै
तूं कद आसी

रोज थारै प्रीत रै देवरै माथै
रूप री प्याली
चोढ़तां-चोढ़ता
म्हारी देह सूखगी
हेत रै चूरमै री पिंडी
पड़ी-पड़ी सूखण लागी
तूं कद आसी
<poem>
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