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अजब क़िस्से सुनाते फिर रहे हैं / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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13:29, 14 नवम्बर 2012
बदन की झुर्रियाँ सच बोल देंगी
कहाँ
ज़्ाुल्फ़ें
ज़ुल्फें
रंगाते फिर रहे हैं
अगर मुझसे नहीं है काम कोई
Tanvir Qazee
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