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07:09, 13 दिसम्बर 2012 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी
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<poem>
हर जगह बस आप को ही ढूँढती है
ये नज़र सच में दीवानी हो गई है
खामखाँ उस को न यूँ बदनाम कीजै
उस की मेरे साथ में बस दोस्ती है .
ये अँधेरे ढूँढ ही लेते हैं मुझको
इनकी आँखों में ग़ज़ब की रौशनी है
सिर्फ इक पल का तमाशा है ये दुनिया
और मज़ा देखो ज़मानों में बनी है
किस क़दर उलझा दिया है बन्दगी ने
उस को पाऊँ तो इबादत छूटती है
नफ़रतों का बोझ ढोती है मुहब्बत
ये नदी शोलों को ले कर बह रही है
</poem>