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05:32, 15 दिसम्बर 2012 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
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रंग बरसे, मोहन मतवारा |
राधा घूम-घूम कर नाचें निरखे मोहन प्यारा ||
भर-भर कर रंग की पिचकारी,ताकि ताक छोड़े गिरधारी |
राधे रानी डटी सामने, भीग गया तन सारा || रंग बरसे ....
साड़ी राधे पहनी ऐसी, क्या बतलावे थी वो कैसी |
साड़ी चिपकी अंग से ऐसे, दिखे गोरा कारा || रंग बरसे ...
गोप्यां माची अद्भुत नाची, मोहन के रंग में वह राची |
बलदाऊ को पकर छविली, सारा बदन उघारा || रंग बरसे ..
हँसने लागे गुवाल-बाल जी, शिवदीन देख रहा होली हाल जी |
एक से एक रंगीले ब्रिज जन, रंग की बह रही धारा || रंग बरसे ..
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