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|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
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रिद्धी सिद्धी, गजानन्द के संग |
प्रथम गणेश मनावें प्राणी, चढ़े भक्ति का रंग || रिद्धी....
अन धन लाभ लक्ष्मी घर आवे, श्री गणपति का गुणगन गावे |
च्यार पदारथ पावे मानव, जीत जाय जग जंग || रिद्धी...
माता पारवती है जांकी, महिमा कथी न जाये वांकी |
महिमा वाले शिवसंभु जी पीवे नित प्रति भंग || रिद्धी...
कहे शिवदीन गजानन्द ध्यावां, गणपति चौथ नाथ गुणगावां |
धन्य पिता शिवजी से थारे, मस्तक साजे गंग || रिद्धी...
जटा जूट की शोभा न्यारी, गणेश जाने विद्या सारी |
गावें गुण गणपति के सब ही, हिला हिला कर अंग || रिद्धी...
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