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किस्सा "गोपीचन्द" / मांगे राम

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<poem>* [[तळै खड्या क्युं रुके मारै चढ्ज्या जीने पर कै ,एक मुट्ठि मनै भिक्षा चहिए देज्या तळै उतर कै । सुपने आळी बात पिया मेरी बिल्कुल साची पाई,बेटा कह कै भीख घालज्या जोग सफ़ल हो माई ।बेटा क्युकर कहूँ तनै तू सगी नणंद का भाई,उन नेगां नै भूल बिसरज्या दे छोड पहङी राही ॥ पिया सोने के मन्नै थाळ परोसे जीम लिये मन भर कै,राख घोळकै पीज्यां साधू हर का नाम सुमर कै ॥ तळै खड्या क्युं रुके मारै.....</poem>मांगे राम]]
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