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20:41, 29 जनवरी 2013 <poem>
तळै खड्या क्युं रुके मारै चढ्ज्या जीने पर कै ,
एक मुट्ठि मनै भिक्षा चहिए देज्या तळै उतर कै ।
सुपने आळी बात पिया मेरी बिल्कुल साची पाई,
बेटा कह कै भीख घालज्या जोग सफ़ल हो माई ।
बेटा क्युकर कहूँ तनै तू सगी नणंद का भाई,
उन नेगां नै भूल बिसरज्या दे छोड पहङी राही ॥
पिया सोने के मन्नै थाळ परोसे जीम लिये मन भर कै,
राख घोळकै पीज्यां साधू हर का नाम सुमर कै ॥ तळै खड्या क्युं रुके मारै.....
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