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|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
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समझ नर, मन से सब कोई हारा।
बडे-बड़े राजा महाराजा, देव दनुज जग सारा।
बनवासी तपसी भी हारे, हार गये तन गोरे कारे,
दश हजार गजबल वारे भी, नागराज अहि कारा।
मन के कारन पड़े भरम में, क्या जाने क्या लिखा करम में,
समझदार व्रत तीरथवारे, मरा न मन, मन ही ने मारा।
बरषो़ जुगों हीं साधन साधा, मन है मन तो सबका दादा,
एक छनक में धूर उड़ा दे, चले न कोई चारा।
कहे शिवदीन संत की दाया, जिस पर भी होजाये भाया,
वह कोई जीते मन को जीते, है वही प्रभु का प्यारा।
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