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सम्बन्ध / दिविक रमेश

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[[Category:कविता]]
<poeMpoem>सोचता हूंहूँ
न होतीं अगर खड़ी ये संबंधों की दीवारें मेरी हिमायत में
तो झड़ चुके होते तमाम-तमाम संबोधन कभी के
ढह ही चुका होता कब का घर बावजूद मजबूत नींवों के।के ।
मिस्सर जी बताएं बताएँ आप ही
चढ़ लेते ही बिटिया के डिब्बे में
क्यों हो जाती है रेल की रेल अपनी -सीकैसा तो डूब लेता है रोआंरोआँ-रोआं रोआँ प्रार्थनाओं के सुरक्षा कवच में।में ।अरे भाई बैठे तो होंगे न तनिक कभी रूख की छांह छाँह मेंखासकर ख़ासकर पसीना-पसीना हो चुकी राह को निचोड़नेस्वार्थ कहूं कहूँ तो क्या भूल पाए कभी छांह छाँह या बिरछ को?
नहीं जानता कौन रचता है ये संबंधसम्बन्धपर होते हैं बहुत खूबसूरतख़ूबसूरतअच्छी भूख से।से ।
ध्यान कर रामेश्वर सेतु का
मिल कर करें प्रार्थना
कि एक पुल बना रहे
हमारे संबंधों के बीच सदा।सदा ।
एक आंसू आँसू जब गिरता है टूटकर आंख आँख सेज़रूर तलाशता है एक जमीन ज़मीन अपनी
बेरुखा होकर भी
चाहे वह हथेली ही क्यों न हो किसी की
जिसे अपना होते देर नहीं लगती।लगती ।
मिस्सर जी बतावें आप ही
जुड़ता तो कांच काँच का गिलास भी नहीं टूटकर
पर गिरते हैं जब हम
एक दूसरे के संबंधों की आंख आँख सेतो जुड़ भी पाते हैं कभी मुड़कर।मुड़कर ।
ये संबंध ही हैं न जो नहीं थकते कभी रूखाली पर
ये संबंध ही हैं न जो लबालब भरा रखते हैं सूखी नहरों तक को
सपनों के आब से।से ।
ये संबंध ही हैं न जो भूतों और आत्माओं तक का करते हैं सृजन
ये संबंध ही हैं न जिन्होंने पुजवाया है नदियों, पहाड़ों और समुद्रों को,
प्राण दिए हैं जिन्होंने पत्थरों, शिलाओं को।को ।ये संबंध ही हैं न जिन्होंने बंधवाई बँधवाई हैं शाखाओं पर गांठेंगाँठें,चढवाए हैं जनेऊ पीपल पर।पर ।
मिस्सर जी बतावें ज़रा आप ही
कौन हैं हम और आप ही
चोट हमें लगती है और दर्द आपको
यह ससुर संबंध नहीं तो और क्या है मिस्सर जी।जी ।</poem>
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