[[Category:कविता]]
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मैं उठा ऒर और उठता चला गया
जैसे कि तूफान !
जा लगा उस सीने से
जो था ही नहीं, कहीं
मेरे वज़ूद सा ।
मैं शान्त हुआ ऒर और खो गया
हालाँकि था ही क्या खोने को पर खो गया
लेता रहा आकाश हिलोरे ।
मैं उठा ऒर और चढ़ बैठा आकाश के कंधों पर ।
मुझे साँस मिली
जॆसे आकाश मेरा पिता हो ।
यह किस्सा । नहीं जानता
मैं कब चटका ऒर और अपने से दूर हो गया
और बहुत करीब अपने पास आ गया ।
जाने क्या गुनगुनाता रहा देर तक