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ख़्वाह कर इंसाफ़ ज़ालिम ख़्वाह कर बे-दाद तू
पर जो फ़रयादी हैं उन की सुन तो ले फ़रयाद तू.
दम-ब-दम भरते हैं हम तेरी हवा-ख़्वाही का दम
कर न बद-ख़ुओं के कहने से हमें बर्बाद तू.
क्या गुनह क्या जुर्म क्या तक़सीर मेरी क्या ख़ता
बन गया जो इस तरह हक़ में मेरे जल्लाद तू.
क़ैद से तेरी कहाँ जाएँगे हम बे-बाल-ओ-पर