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धार वह जन मारे नहीं मरेगा
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रचनाकार: [[अरुण कमलकेदारनाथ अग्रवाल]]
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कौन बचा जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है जिसके आगेइन हाथों तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ हैजिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा हैजो रवि के रथ का घोड़ा हैवह जन मारे नहीं मरेगानहीं पसारामरेगा
यह अनाज जो बदल रक्त मेंजीवन की आग जला कर आग बना हैटहल रहा फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है तन के कोने-कोनेयह कमीज़ जो ढाल बनी जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा हैबारिश सरदी लू मेंसब उधार जो युग के रथ का, माँगा चाहानमक-तेल, हींग-हल्दी तकसब कर्जे कायह शरीर भी उनका बंधक अपना क्या घोड़ा है इस जीवन मेंसब तो लिया उधारसारा लोहा उन लोगों कावह जन मारे नहीं मरेगाअपनी केवल धार । नहीं मरेगा
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