कवि: [[कबीर]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=कबीर]]~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*}}
घूँघट का पट खोल रे, तोको पीव मिलेंगे।
घूँघट का पट खोल रेघट-घट मे वह सांई रमता,तोको पीव मिलेंगे।कटुक वचन मत बोल रे॥
घट-घट मे वह सांई रमताधन जोबन का गरब न कीजै,कटुक वचन मत बोल रे॥झूठा पचरंग चोल रे।
धन जोबन का गरब न कीजैसुन्न महल मे दियना बारिले,झूठा पचरंग चोल रे।आसन सों मत डोल रे।।
सुन्न महल मे दियना बारिले,आसन जागू जुगुत सों मत डोल रे।।रंगमहल में, पिय पायो अनमोल रे।
जागू जुगुत सों रंगमहल में,पिय पायो अनमोल रे। कह कबीर आनंद भयो है,बाजत अनहद ढोल रे॥