<div style="font-size:120%; color:#a00000">
वह जन मारे नहीं मरेगालोकतंत्र का धोखा बना रहे
</div>
<div>
रचनाकार: [[केदारनाथ अग्रवालदिनकर कुमार]]
</div>
<div style="text-align:left;overflow:auto;height:450px;border:none;"><poem>
जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ हैविचारधाराओं के मुखौटे लगाकरतूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ हैकारोबार करने वाली राजनीतिक पार्टियाँजिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा हैअसल में निजी कम्पनियाँ हैंजो रवि के रथ का घोड़ा हैवह जन मारे नहीं मरेगाहमें शेयर की तरह उछालती हैंनहीं मरेगाबेचती हैं ख़रीदती हैं निपटाती हैं
जो जीवन की आग जला कर आग बना हैनिजी कंपनियों के जैसे होते हैं मालिक-मालिकिनफौलादी पंजे फैलाए नाग बना हैजिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा हैवैसे ही इन पार्टियों के भी हैं मालिक-मालिकिनजो युग विज्ञापनों के रथ सहारेहमें डराती हैं कि अगर हमने प्रतिद्वंद्वी कम्पनी का घोड़ा हैवह जन मारे दामन थाम लिया तो हम कहीं के नहीं मरेगारहेंगेनहीं मरेगाये कम्पनियाँ संकटों को प्रायोजित करती हैंउसी तरह जैसे दंगों को प्रायोजित करती हैं मुखौटे उतारने पर इन सभी कम्पनियों के चेहरेएक जैसे लगते हैंएक जैसी ही विचारधाराएक जैसी ही लिप्साएक ही मकसद कि लोकतंत्र का धोखा बना रहेलेकिन हम बने रहें युगों-युगों तक ग़ुलाम।
</poem></div>