|रचनाकार=राम प्रसाद बिस्मिल
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[[Category:देशभक्ति]]{{KKPrasiddhRachna}}
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सर फ़रोशी सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैदेखना है ज़ोर कितना बाज़ूबाज़ु-ए-क़ातिल कातिल में है।है.
करता नहीं क्यूं क्यूँ दूसरा कुछ बात चीतबातचीत,देखता हूं हूँ मैं जिसे वो चुप तिरी मेहफ़िल तेरी महफ़िल में है।है.
ऐ शहीदेए शहीद-मुल्कोए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर चरचा गैर की महफ़िल में है।है.
वक़्त सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैवक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमाँहम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।ए आसमान,
खींच हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में हैखैंच कर लाई लायी है सब को क़त्ल कत्ल होने की उम्मीदआशिक़ों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है।,
यूं आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में हैसरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर. खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है. हाथ जिन में हो जुनून कटते नही तलवार से,सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से. और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है. हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम. जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है. यूँ खड़ा मक़तल मौकतल में क़ातिल कातिल कह रहा है बार -बार,क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी किसि के दिल में है।है. दिल में तूफ़ानों कि टोली और नसों में इन्कलाब,होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज. दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून. तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है.
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