|भाषा=भोजपुरी
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'''१.'''
खेलत रहलीं सुपली मउनिया, आ गइले ससुरे न्यार।
बड़ा रे जतन से हम सिया जी के पोसलीं, सेहु रघुवर ले-ले जाय।
आपन भैया रहतन तऽ डोली लागल जइतन, बिनु भैया डोलिया उदास।
के मोरा साजथिन पौती पोटरिया, के मोरा देथिन धेनु गाय।
आमा मोरे साजथिन पावती पोटरिया, बाबाजी देतथिन धेनु गाय।
केकरा रोअला से गंगा नदी बहि गइलीं, केकरे जिअरा कठोर।
आमाजी के रोअला से गंगाजी बहि गइलीं, भउजी के जिअरा कठोर।
गोर परूँ पइयाँ परूँ अगिल कहरवा, तनिक एक डोलिया बिलमाव।
मिली लेहु मिली लेहु संग के सहेलिया, फिर नाहीं होई मुलाकात।
सखिया -सलेहरा से मिली नाहीं पवलीं, डोलिया में देलऽ धकिआय।
सैंया के तलैया हम नित उठ देखलीं, बाबा के तलैया छुटल जाय।
'''१२.'''<br>खेलत रहलीं सुपली मउनिया, आ गइले ससुरे न्यार।<br>बड़ा रे जतन से हम सिया राजा हिंवंचल गृहि गउरा जी के पोसलींजनमलीं, सेहु रघुवर ले-ले जाय।<br>शिव लेहले अंगुरी धराय।आपन भैया रहतन तऽ बसहा बयल पर डोली लागल जइतन, बिनु भैया डोलिया उदास।<br>के मोरा साजथिन पौती पोटरिया, के मोरा देथिन धेनु गाय।<br>आमा मोरे साजथिन पावती पोटरिया, बाबाजी देतथिन धेनु गाय।<br>केकरा रोअला से गंगा नदी बहि गइलीं, केकरे जिअरा कठोर।<br>आमाजी के रोअला से गंगाजी बहि गइलीं, भउजी के जिअरा कठोर।<br>गोर परूँ पइयाँ परूँ अगिल कहरवा, तनिक एक डोलिया बिलमाव।<br>मिली लेहु मिली लेहु संग के सहेलिया, फिर नाहीं होई मुलाकात।<br>सखिया -सलेहरा से मिली नाहीं पवलीं, डोलिया में देलऽ धकिआय।<br>सैंया के तलैया हम नित उठ देखलींफनवले, बाबा के तलैया छुटल जाय।<br><br>बाघ छाल दिहलन ओढ़ाय।
'''२.3'''<br>राजा हिंवंचल गृहि गउरा जी जनमलींबर रे जतन हम आस लगाओल, शिव लेहले अंगुरी धराय।<br>पोसल नेहा लगायबसहा बयल पर डोली फनवलेसेहो धिया आब सासुर जैती, बाघ छाल दिहलन ओढ़ाय।<br><br>लोचन नीर बहाय जखन धिया मोर कानय बैसथिन, सखी मुख पड़ल उदासअपन सपथ देहि सखी के बोधल, डोलिया में दिहले चढाय. लोचन नीर बहाय... गाम के पछिम एक ठूंठी रे पाकरिया, एक कटहर एक आमगोर रंग देखि जुनी भुलिहा हो बाबा, श्यामल रंग भगवान. लोचन नीर बहाय...