य दुनी है !
मिं के परमेश्वर जै कि भयूं ।
== बसन्त ==
'''दामोदर जोशी 'देवांशु' की कविता, उनके खंड में डाल दें.'''
सृष्टि में न्यारी हलचल हैगे
फल-फूलों लै डालि झुकी गे
खुशबू को यो संसार ल्ही बेर
आऔ बसन्त युग-युग आऔ।
फूल-फूल में भौंर नाचनी
डलि-डालि में चाड़ बासनी
कोयलकि मीठी कूक ल्ही बेर
आऔ बसन्त युग-युग आऔ।
वाल-पाल डाना बुरूँशि फूलिया
प्योलि सरसों लै खेत भरिया
मौनूँकि प्यारी गुन-गुन ल्ही बेर
आऔ बसन्त युग-युग आऔ।
खेति-पाति यो देखो हरिया
घास-पात लै खूब भरिया
पुतई जास घस्यार ल्ही बेर
आऔ बसन्त युग-युग आऔ।
होलिक रंङिल त्यार मनाओ
आज घर-घर रितु गाईनौ
प्रेम-भावकि सीख ल्ही बेर
आऔ बसन्त युग-युग आऔ।
गुदि-गुदि लगूँनि घामक दिना
दिन मस्ती और रात में चैना
घाम-जाड़ाक् बीच है बेर
आओ बसन्त युग-युग आऔ।।
जङव छाज नई जैसि नई ब्वारी
दुःख सुणूनैं न्योलि दुःख्यारी
सब ऋतुओं में राज है बेर
आओ बसन्त युग-युग आऔ।।
तुछै ज्वानी उमंग नई
बसंत तेरि ल्यूनौ बलाई
सौभाग को सूरज दगड़ ल्हीबेर
आओ बसन्त युग-युग आऔ।।